Peers & Mazars

   

Sardar Sakhi Sawant Khan Panwar Urf Zheetu KhanPanwar was Born in Panwar Family at Ridmalsar Bikaner India in 1770 A.D. he used to live in Jorbeed (Forest) at Sawantpur Ridmalsar Bikaner near railway line.he spent all his life there and died in 1847. his graveyard (Mazar) is built there. all the panwar families celebrate his Ursh every year to prove that he was their great saint

सरदार सखी सावंत खान पंवार उर्फ़ झिटूं दादा का जन्म पंवार खानदान में बीकानेर जिले के रिडमलसर गाँव में 1770 में हुआ. आप रिडमलसर के पास सावंतपुर में जोरबीड में रेलवे  लाइन के पास रहते थे. वहां उन्होंने पूरा जीवन एक ज़ाल  के पेड़ पर गुजारा. आपका इंतकाल 1847 में अपने अज़ीज़ो के हाथों से ही हुआ.उनका मजार यहाँ पर बना हुआ है. पंवार खानदान के लोग हर साल उनका उर्श मनाने के लिए उनके मजार पर  अपनी हाज़री देते है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बीकानेर से 10 किलोमीटर दूर रिडमलसर सिपाहियान में मिर्ज़ा मुराद बेग का आस्ताना (दरगाह) है जिनके सालाना उर्श तक़रीबन 20 साल से मनाये जा रहे है. बहुत अरसे पहले आप गाँव की मस्जिद  में रहते थे. जब आपके पर्दा फरमाने का वक़्त करीब आया तो आपने गाँव वालों को ज़मा किया और कहा आप लोग दुनिया की कामयाबी चाहते हो तो मुझे मस्जिद में दफनाना और आखिरत की कामयाबी  चाहते हो तो मुझे कब्रिस्तान में दफनाना . उस वक़्त के बुजर्गो ने निहायत ही दूरदर्शिता का परिचय दिया जो उन्हें कब्रिस्तान में दफनाया क्योंकि दुनिया चार दिन की है, जैसे तैसे गुजर जाएगी, आखिरत की जिंदगी कभी ख़त्म होने वाली नहीं है. उस ज़माने में लोग बहुत ही ताक़तवर और तंदरुस्त होते थे.और गाँव रिडमलसर के आसपास के गाँव में चर्चा हुआ करती थी कि शादी के मोके पे हलवा, चावल बनाये जातेथे. जिसके बारे में कहावते मशहूर है कि रात को लोग कड़ाई में सो जाया करते थे.और खाना तैयार होकर ज्योही खिलाया जाता था तो घंटे भर में कडाव साफ कर दिया जाता था .एस बात अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस वक़्त के लोगो कि खुराक कैसी होती थी. काबिले गौर है कि हज़रत मिर्ज़ा मुराद बेग ने एक हांड़ी में सवा सेर चावल पकाए थे . और पुरे गाँव को खाना खिलाया .जब हांड़ी का पूरा ढक्कन खोला गया तो उसमे जितने चावल पकाए गए थे वो चावल बाकि बचे हुए मिले थे.लोगो ने यह मंज़र देखा तो उनकी अक्ल दांग रह गयी और दूर दूर तक चर्चे होने लगे. उस वक़्तके लोगो का अकीदा निहायत ही मजबूत और पक्का होता था.बरसात होने में देरी होने के कारण गाँव वालों का दस्तूर था की मिर्ज़ा मुराद बेग के आस्ताने पर लोग जमा होते और सीरनी  करते .दूर दूर तक बादली नहीं होने  के बावजूद भी शाम तक घटायें आती बरसात बरस कर चली जाती.यह हर साल त्योंहार  की तरह मनाया जाने लगा.आज भी अकीदतमंद लोग फैज़ पते है और अपनी झोलियाँ (दामन ) मुरादों से भरते है.सबसे बड़ी बात यह है की वली के दरबार में किसी तरह की मजहबी पाबन्दी नहीं होती.किसी भी मजहब का मानने वाला हो दरबार में हाज़िर होकर जायज़ मुरादों के लिए झोली फैलाये और दामन ए मुराद से मालामाल हो जाता था.शर्त यह है की अकीदा रखता हो.अकीदतमंद लोग एन करामातों पर इतफाक रखते है.वली अल्लाह के दोस्त होते है. वली के माईने मालिक के होते है.अल्लाह ने बेशुमार ताक़तों से वलियों को नवाज़ा है..वे खुद अल्लाह औरउसके रसूल  के इश्को मुहब्बत की भट्टी में अपने आपको  जलाकर राख कर देतें है.तब इनके अंदर अल्लाह की तरफ से वो ताकत औ कुव्वत  पैदा हो जाती है अल्लाह के वली मौत से पहले फ़ानी हो जाते है.मगर दीन की दुनिया  में ये लोग बादशाही करते है.इससे बढ़कर बादशाही  क्या होगी की जो कुछ एन हज़रात की जुबान  से निकलता है.परवरदिगार आलम उनकी दुआए पूरी फरमाता  है.आज भी मिर्ज़ा वली के आस्ताना ए मुबारक से अकीदतमंद लोग फैज़ उठाते है.यानि औलिया का कहा हुआ अल्लाह का फरमानहोता है.अगर चे यह अल्लाह के बन्दे की हलक से निकला हुआ कलाम हो.

 

वली की करामात

द्वारा

जनाब  सरफ़राज़ खान  मांगलिया

सदर  गाँव रिडमलसर,बीकानेर

 

Ridmalsar Bikaner India

Panorama scene of mirza wali dargah

   

Panorama scene of mirza wali dargah Ridmalsar Bikaner taken at the time of Ursh of mirza wali 2011

मिर्ज़ा वाली दरगाह का विहंगम द्रश्य जो 2011 में उर्श के मोके पर 360 डिग्री पर लिया गया है

 

By

Sadik Khan panwar

 

Gebna peer (Gebbi Dada) Ridmalsar Bikaner India

Gebna peer (Gebbi Dada) Ridmalsar Bikaner India

Rustamshah Peer Ridmalsar

                Rustamshah Peer Ridmalsar Bikaner India