Poetry written by Mr Rustamdeen Panwar 
s\o Late Ramzan Khan Panwar

दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया .
खानदान पंवार मैं उसने ,जन्म जमीन पर पाया.
जैसे हो गुलाब खार मैं ,वो भी यों मुस्काये .
खाकी वर्दी पहन के वो, पुलिस में फिर भी छाये .
यों इक़बाल हुसैन पंवार को देखो ,रूप चाँद सा पाया .
दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया.
हेरेडीटी का असर रहा.सदीक पंवार मैं वैसा .
रुस्तमजी पंवार ने देखो,लिख दिया वैसा का वैसा .
फ़िल्मी हीरो जैसी उनकी,लगती थी वैसी काया .
दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया.
ठाट बात से जीवन बिता ,न मायूसी छायी .
चारों और हमेशा उनके ,रोज़ बहारें आई .
बीकानेर मैं नाम का अपने,यों डंका पिटवाया(बजवाया).
दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया.
दुआ करूँ अल्लाह से हरदम,एक मर्द दे ऐसा .
खानदान पंवार का करदे,नाम भी रोशन वैसा .
सुबह शाम और रात को मैंने ,तेरा ही ध्यान लगाया .
दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया.
ऐसे वीर बहादुर सारी वसुंधरा पर छाये .
खानदान पंवार हो पथ मैं ,देख धरा मुस्काये .
दिल का राजा रहा ,बादशाह और प्रिन्स कहलाया.

A lot of thanks to Mr Rustamdeen Panwar for writing this poetry to appreciate my father late iqbal Hussain Panwar
Adapted by - Sadik Khan Panwar

 

 

Poetry written by Mr Rustamdeen Panwar 
s\o Late Ramzan Khan Panwar

करो माँ बाप की सेवा,बनो फिर बाद मैं हाजी 
खुद और मुस्तफा दोनों ,तुम्हारे से हो फिर राज़ी .
तुम्हारे पास हो पैसा ,नहीं वो साथ जायेगा .
किसी गरीब को दिया हुआ,फिर भी काम आएगा .
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
दुआवों में असर ऐसा ,यकीन हो चीर दे सीना .
दिखा देगा ज़माने को,यहाँ मक्का और मदीना.
लगी लो मुस्तफा की ,बंद आँखों से सब कुछ दिख जाये.
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
हमारे मुस्तफा की आभा और मेहताब का चेहरा 
करूँ दीदार मर जाऊं,नहीं कोई वह पेहरा .
बने वो नबियों के सरदार और इमाम कहलाये.
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
मदीने मैं रहे तो "रुस्तम"को सुकून मिलता है.
जमीं कौसर सी लगती है ,दिल का बाग़ खिलता है.
जहाँ ज़न्नत ही मिलती है,वहां पर क्यों नहीं जाएँ .
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये.
मेरी तक़दीर बन जाती ,जन्म होता मदीने मैं .
वहां की गलियों में फिरता ,मजा आ जाता जीने मैं.
मरुँ जब ,मुस्तफा की सर जमीन पर मुझ को दफनाये
मेरी तक़दीर बन जाती ,जन्म होता मदीने मैं .
वहां की गलियों में फिरता ,मजा आ जाता जीने मैं.
मरुँ जब ,मुस्तफा की सर जमीन पर मुझ को दफनाये
Adapted by - Sadik Khan Panwar